Thursday, March 26, 2009

On My Own ....

सोचता हूँ आज फिर लिखूँ , बहुत दिनों बाद फिर कुछ सीखूं,
जब मैं प्रयत्न करता हूँ, तो सोचकर बहुत कुछ चलता हूँ,

मेरे हृदय में फिर भूचाल है, खैर चलता हूँ हरदम साथ लेकर
हो न हो कोई यहाँ, मैं चलूँगा ऐसे ही ,सम्भव सब साथ लेकर

विचारो की माया में उलझने से बेहतर नही विचार शुन्य होना
खैर उलझकर सुलझाने में ही छिपा शुन्य से अनंत होना

कड़ी धुप में बग्घी पगडण्डी पर चलती हुई, रेत के गुब्बार में
खांसते हुए उस को देखकर, मैं सोचता हूँ, रेत के गुब्बार से
कुछ फरक है, या नही , किसी को अहसास नही, क्यों सोचो तो
एक जो चले अन्दर, दोनों विचार शुन्य, एक धुल के अन्दर
एक तो चलता गया, एक जो सहता गया, आदत है सबको

मैंने पहले ही कहा था, ये तो सीखने के लिए लिखा था,
मिला न कोई तुक तो, क्या हुआ ऐसे ही तो सिखा था

लिखते हुए अगर कुछ भी न मिला तो क्या, विचार देख
बस लिखा और लिखा,शब्द मैं क्यों उलझे , विचार देख

मैं तो परिवर्तन की वकालत करता हूँ, कोई क्रांति नही,
बस सुलझन से परिभाषित करता हूँ, कोई भ्रान्ति नही

जब शुरू हो जायें तब मुश्किल इतनी सी, चलना तो होगा
मैंने भी पुनः पंक्तियों को देखा, यही सोचा, इनका अंत कहाँ होगा

कलम तो ऐसे ही चलती रहेगी, सोचते हुए भी सब सहती सहेगी
चलो केवल उसी का बलिदान लो, मिले संबल तो कहती रहेगी

कारवां में चलना एक ही दिशा में , मिलें हवाओं के कितने रुख
यूँही यंहा परिभाषाओ मैं उलझे रहें , तो जीवन का क्या सुख

भोग और उपयोग मैं बहुत फरक है, भोग तुम करो तो
उपयोग तुम करो तो, तुम्हारा ही रहेगा,फिर न तुम रहो तो

सबके साथ सफर में कितने है, मेरा रास्ता मुझे तय करना
मेरे रास्तें , थोड़ा तेज़ चलना होगा, जब अकेले ही चलना

कितना कुछ सिखा अभी, मंथन कर और कर दे सही
वो जो अब गलत है, और वो भी जो कभी न था सही

बनकर राही और रास्ता, सब तय कर लूँ अभी से, हाँ अभी से
प्रेम मिले तो त्याग सीखूं, त्याग हो तो प्रेम से करूँ, हाँ अभी से

भ्रमित मत हो बंधू, उलझन की इक डोर में ही सब कुछ समाया
तो सुलझाना शुरू कर अगर मेरे सिवा और किसी ने भी उलझाया

..paras