tag:blogger.com,1999:blog-62286564188690073282024-02-20T10:40:33.253-08:00ParasParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-47916257252476508232012-01-04T06:14:00.000-08:002012-01-04T06:16:34.744-08:00हल्का हलके हलकेये फडफडाता है<br />आगे की दो बात लेके<br />कुछ एक का साथ देके<br /><br />खो जाना चाहता है<br />बढ़ते हुए कुछ<br />जादु के लम्हे<br />गोद दे जाना चाहता है<br /><br />ये गुदगुदा जाता है<br />कुछ उन अनजानी बातो से<br />याद करके अब छोटा लगता है<br />क्या करता पता नहीं था ना<br /><br />ये उड़ जाता है<br />आ रहे कल को देखके<br />होगी कल दोपहर के बाद की बात<br />अगल बगल होंगी<br />किसी के कल की शाम<br /><br />बिंदु लकीर बन गए वो दृश्य<br />छौंक में जब खलके तो<br />ये भी चमचमाता है<br />अपने पास की लालटेन सोचकर<br /><br />माथे सिंदूर लगा<br />मैं आँखों टेढ़ा चश्मा लगा<br />गिरी सायकिल से टुटा घुटना अच्छा<br />पड़ी मिटटी में मथा माथा अच्छा<br />ये फिर से गिर जाना चाहता है<br /><br />तेज़ कर दे आवाज़<br />कम आवाज़ कान फोडती है<br />सुनेगा सुर खुद का<br />वो बोले इतने जोर से<br />ये बडबडाना चाहता है<br /><br />हर दिन वही<br />रात के बाद दिन वही<br />बिना दोपहर के दिन नहीं<br />दिन गिन बीते तो, रातो बैठकर<br />ये गिनती भुलाना चाहता <span>है<br /><br /><br /></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-49354138759547634932011-12-26T06:16:00.000-08:002011-12-26T06:17:27.066-08:00अनायास यूँ हीमैंने कागज़ पे लिखा था अपना बचपन<br />आज वही रुपहले कागज़ लिए बेठा हूँ<br /><br />स्याही की औकात आज समझता हूँ<br />वो टूटी दवात में डुबो के लिखे थे<br />नयी कलम हाथ में लिए बेठा हूँ<br /><br />देखे दिखाए थे कंकड़ जैसे अक्षर<br />मैं जो बोलूं , आज कोई लिख भी दे,<br />फिर भी अज्ञात लिए बेठा हूँParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-14336458052557825252011-05-12T11:27:00.000-07:002011-05-13T13:37:39.998-07:00सोचा तो सुलग पड़ा ऐसेमेरी साख कंहा तक जाती है<br />मुझे खुद नहीं पता<br />पर एक तलब किसी को जताने की<br />खुद को खुद तक समेट ले आती है<br /><br />बेबुनियाद तरीके है मेरे<br />तलब और नासमझी भर देती है<br />खुश्क भीगना चाहता है यंहा,<br />पर भीगे को सूखे का अहसास नहीं<br /><br />वाजिब चीजों के फ़लसफ़े मुझी तक है<br />गनीमत है उनको कभी कहा नहीं<br />मेरे कहने से कुछ नहीं बदलता<br />खुश्क भिगोना चाहे भी तो, मैं तो भीगा ही हूँ<br /><br />गहरे राज़ दिल में दबे ही रहते है<br />निकलते निकलते उड़ते पंछी से हो जाते है<br />मैं क्या कहूँ, कहने की हालत नहीं<br />खुश्की मिटती नहीं, और वो बरसता नहीं<br /><br />अपनी शख्सियत कितनी महँगी होती है<br />मैं तो कहूँगा बेच दो, जितनी भी हो<br />अगर अभी भी खुश्क है, तो बिक जायेगी<br />किसी ने सही में खरीदना चाहा तो..<br />बिकने ही नहीं जायेगी<br /><br />बची चीजों को तराजू में तोलने का मतलब नहीं<br />उनसे कुछ वक़्त बच जाए तो रख लो<br />वो लगी हुयी जंग जितनी ही कीमती है<br />अभी भी तराजू ताक में रखा है तो<br />अगली बार लोहा ही न लेना<br /><br />..parasParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-20522227720972513512011-05-12T11:25:00.000-07:002011-05-13T13:37:40.090-07:00कल फिर<h6 class="uiStreamMessage" ft="{"type":"msg"}"><span class="messageBody">होश की आवाम मैं बेनकाब होते है कई किस्से,<br />बेहोश दब जाते कुछ, जो कभी महसूस होते है,<br />अनजान हवा का रुख, दूर कंही से जो निकला है ,<br />पास आते आते और बेतरतीब सा हो जाता है,<br />इस दफा , और क्या उस दफा .....<br />दिल तो कल भी वही करेगा, जितना उसने जाना है</span></h6>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-84922743399200044442011-04-14T15:53:00.000-07:002011-04-14T15:54:21.553-07:00एक बात कह दूँकभी जो कुछ आम थे<br />अब याद बन जायेंगे<br />सूखे पत्तो की तरह<br />गिरे जमीन पे ..<br />पड़े पड़े कुछ बात कह जायेंगे<br /><br />मौसम के इस पल में अब वो पतझड़ है<br />अगले पतझड़ तक कुछ मौसम<br />और गुज़र जायेंगे ..<br />तनिक फिर अगर जो गुज़रा तो<br />गुज़र के वो ज़माना बन जायेंगे<br /><br />उतरी टहनियों से कभी प्यार ना था<br />वो बहते रास्तो को रोका करती थी<br />वहीँ कंही चलते चलते<br />आज कुछ मुझे अजीब सा लगा<br /><br />इन्ही रास्तो पे बीते है<br />कुछ एक ऐसे पल ..<br />जिनके जाने का यकीन भी ना था<br />अब उतरती हुई ये हवा जैसे<br />पैरो को छु छुके जाती है<br /><br />मौसम की अजीब हरकतों पे<br />मैं खूब झल्लाया हूँ ..<br />इस जमी हुयी बर्फ की चादर में<br />रौंदती हुयी आंधी की याद हो आती है<br /><br />शायद मेरी फितरत में है ऐसा कुछ<br />गुज़रा वो कुछ आसान सा लगता है<br />मगर सोच एक बार के लिए युहीं थम जाती है ...<br />कंही उन सब में कुछ अच्छा तो था<br /><br />डूबती हुई ये सांझ रोज आती है<br />आज सूरज के थमते हुए पीले रंग में कुछ है ..<br />कुछ पुरानी चादरे ...जिनको ढक के<br />खूब कोसा है .. इन्हीं शामों को<br /><br />खुद को हमेशा एक भीड़ से घिरा माना है<br />वो चेहरे जो हर वक़्त ख्याल तोड़ जाते है<br />नहीं देखता था चलते चलते ..<br />आज क्यूँ लगा की कुछ कहना उनको भी बाकी था<br /><br />मेरी फितरत फिर रंग लाती है<br />सोचा की जाते हुए कुछ करिश्मा कर दूँ<br />जिनसे कभी नजरो की बात नहीं हुयी..<br />मुलाकात कर आज कुछ कह दूँ<br /><br />यकीन किसी चीज़ में इतना बस जाता है<br />अच्छा हो ..बुरा हो..अपने से जुड़ जाता है<br />बीती बातों का क्या .. बीतती ही रहती है<br />मैं इतना जीया , बीतना कम सा लगा<br /><br />कुछ चीज़े बस यूँही मिल जाती है<br />मिलने पे उनके .. कभी सवाल नहीं होते<br />हिस्सा बन जाती है वो , बिना किसी गौर के<br />वक़्त का पाया बेठा... बेठा ... मौज उड़ा ही देता है<br /><br />भारी भरकम बोझों तले दबता आया हूँ<br />रुकते रुकते इतना वक़्त बिता दिया<br />कल सुबह इन्हीं गलियों से निकलते वक़्त ..<br />सिर्फ मेरा सामान ही भारी ना होगा<br /><br />कुछ ऐसा जिसे कहने की जरुरत नहीं<br />कुछ ऐसे जिन्हें कहने की जरुरत थी ..<br />वो जानते है ... मैं जानता हूँ ...<br />बहकती रंगीन जिन्दगी की पिटारों में<br />कुछ बहारें ... साथ में थी<br />और अब आगे कुछ अलग होंगी ..<br /><br />बस यूँही सोचा की ...<br />जाते हुए लम्हों को<br />एक बात कह दूँ .<br /><br />..parasParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-78056863801323856172011-03-17T11:01:00.001-07:002011-03-17T11:12:38.646-07:00वो बरसती तो हैबरसती रैना में<br />कुछ तरसते ख्वाब से थे<br />महके महके<br />सुर्ख गुलाब से थे<br /><br />कागज़ की तरह<br />उड़ने को तैयार<br />मदिरा पिला<br />बहकाने को ,<br />आमाद से थे<br /><br />ऐसे जो देखा तो<br />कुछ ऐसे जाना की<br />आज तो भीग ही जाऊँगा<br />भीगा तो सही, पर<br />वो ही बरसने को ,<br />तैयार न थे<br /><br />कितनो को कब कब<br />जाके कहूँ,<br />की ख्वाबो को जीते वक़्त,<br />रैना में भीगते वक़्त,<br />कैसा लगता होगा<br />जब खुद ही जताने को,<br />तैयार न थे<br /><br />कब कब खुद को जा बतलाऊ<br />की ख्वाबो को ऐसे नहीं जीते,<br />फिर बरसती रैना में तो,<br />सब भीग जाते होंगे,<br />फिर , मेरे लिए ही क्यों<br />सवाल तैयार थे<br /><br />ये तरसाती रैना<br />आ आके जाती है<br />बोले तो गरज सुनु<br />बिल बोले बस मंडराकर<br />क्या समझती वो रैना<br /><br />पूछ पूछ के हार जाये कोई<br />ऐसे जैसे इस बार<br />चमकी जो बिजली<br />की अब बरसुंगी<br />की अब बरसुंगी,<br />बेहतर खुद को चमक में<br />भंजित कर लेना<br /><br />लिपट के ठंडी हवा<br />कुछ खास तब भी न बोलेगी<br />मैं कहता हूँ<br />आज ही की तो बात है<br />पर उसे लगता है<br />की आज और फिर कल<br />इस बदली को ला देना<br /><br />फिर सवाल एक<br />की जितने दिन ,<br />मैं इंतज़ार में<br />इतने दिन ये किसमे गुम,<br />शायद,<br />बदली बनते मदहोश रहती होगी<br /><br />या, जिस पे बरसना है,<br />वो बहुतेरे है<br />ऐसे जैसे, अगर मैं न हूँ<br />तो भी कुछ खास न लेना<br /><br />क्रम का अंत तो तब संभव है<br />जो कोई कुछ सिखा के जाता<br />बस वही..<br />बदली बदल बदल के छाती रही<br />मैं नीचे मंडराता रहा<br /><br />समझ के कुछ,<br />इच्छा पे कटार चलायी,<br />मुरझे लिए गुलाब बस मुड़ा सा था,<br />शायद उसे लगा होगा<br />मेरे तांडव अब देखेगा कौन<br />रोज़ रोज़ वो मंडराती थी<br />बिजली जो चमकाती थी<br />शायद कुछ सोचा होगा उसने<br />दो मोटे मोटे छींटे<br />एक सर पे और<br />आधा एक पाव पे<br />तब गिर आन पड़े थे<br /><br />न समझो की,<br />मैं रुका था फिर..<br />शायद बरसती रैना में<br />वो मेरे सुखे ख्वाब<br />कुछ ऐसे परिभाषित <span>थे<br /><br />..paras<br /></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-74055152466488782472010-12-17T21:46:00.000-08:002010-12-17T21:50:30.081-08:00कहीं ऐसेकहीं ऐसे जाना<br /> की दिल के कौने में कहीं जो सच्चाई छुपी है<br /> वो सच्ची है...<br /> उसी को लेके तराशने का मौका ढूढ रहा हूँ<br /> मिली तो यकीन है ख़त्म न होगी<br /> बस मिले तो सही<br /><br /> तलाश ही ऐसी है<br /> भले ही नज़रे बंद कर के<br /> अंधेरो में नज़ारे घूमता हूँ<br /> रौशनी अन्दर की आवाज़ देती है<br /> देखने को अँधेरे भी खूब है<br /> फिर नहीं दिखी वो तो<br /> सुन लूँगा उसे ..<br /><br /> यकीन जज्बात से पैदा होता है<br /> खुदा का खुद पता नहीं है<br /> बस सुना है की होता है<br /> वो यकीन ना में करते है<br /> और मैं होने में<br /> फरक कुछ नहीं है<br /> उन्हें बैठने में तसल्ली है<br /> और मुझे ढूढने में<br /><br /> खुद तलाश का पता हो तो<br /> असर जल्दी ख़त्म हो जाता है<br /> कहते है की<br /> वंहा पहुँच के जन्नत नसीब होती है<br /> अब और क्या कहूँ<br /> चला जा रहा हूँ<br /> इतने में ही जन्नत का मेहराब<br />दिखाई जान पड़ता है <span id="6_TRN_6e"></span><span id="6_TRN_68"></span><br /><br /> ..parasParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-45614996924312150532010-11-04T02:52:00.000-07:002010-11-04T02:54:18.963-07:00आनंदअधरों कहानी बात वो बोले<br />जब जब जाए फिर से टन्टोले<br />मद का क्या मैंने हर वक़्त साधा<br />बना आदी, छोड़ किनारे, बना अब आधा<br />जग सब दिलादे मैं जाऊ, अब मद को पाने<br />है कुछ नहीं . पर जब पी लू तब तब ले आऊ .. .<br /><br />मद में हिलोर जो लागे<br />आनंद उपज खुद की ही लागे<br />जो हो लू ऐसे किसी पीड़ा से<br />हिलोर मिला मैं पी जाऊ<br />फिर दिवाली, फिर हो होली<br />रंग खेलु या फिर दिये जलाऊ .<br /><br />शुभ दीपावली<br />॥ पारस ॥Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-25572398479238351852010-11-02T07:32:00.000-07:002010-11-02T08:00:29.532-07:00ऐ मौला<p>दूर हरियाली में मेहनत करे, उस से धुल दो शब्द मांगे<br />हरों को वो आबाद करे, लौटा उसे ढाणी दे मौला !</p> रेत <span>की</span> <span>सपाट</span> <span>चादर</span> <span>पे</span>, <span>हवाए</span> <span>रेंग</span> <span>रेंग</span> <span>चली</span> <span>गयी</span><br /><span>अब</span> <span>मेरी</span> <span>नज़रे</span> <span>दौड़ती</span> <span>है</span>, <span>उस</span> <span>पे</span> <span>वो</span> <span>दो</span> <span>पाग</span> <span>बना</span> <span>दे</span> <span>मौला</span> <p>जूनून विदा कर देता है, धरती आस लगा लेती है<br />अब तो खूब बरस भी गया, प्यासों को वापिस बुला ले मौला</p> <p>उजड़े उजाड़ में आते है , बस देख देख के जाते है<br />पता वहीँ का देती हूँ, उनको भी आबाद बना देगा मौला</p> <p>मेघ खूब उमड़ आते है तो क्या, प्यास वहां क्या लगती नहीं<br />बंज़र पे लगा दे तू पौधा, प्यास का मतलब बता दे मौला</p> <p>सांझ तेरी थली पे नित आऊ, तेरा दिया रोज़ जलता है<br />मंदिर मस्जिद रोज बेठता है, खुद को दिलो में बसा दे मौला</p> <p>दर पे एक दिन भी बाती मैंने न जलाई, आने वालो की कमी नहीं<br />तेरा घर जिसने ना भी देखा, उनके भी दुःख मिटा दे मौला</p>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-11190715740632579172010-10-09T13:43:00.001-07:002010-10-09T13:43:57.840-07:00चाहमैं बीत जाना चाहता हूँ<br />हंसी के गलियारों में<br />बहा के ले जाती है<br />रह रह के ठंडी हवा<br />वहां मुझ को..<br /><br />कुछ मुस्काने दबी पड़ी है<br />वंहा जैसे अभी , वो वहीँ है<br />पलको भीतर जिन्दा है<br />दौड़ते हुए बातें करता हूँ<br />दूर हूँ, कंही साथ लेके चलता हूँ<br /><br />जान पड़ता है, जैसे वहीँ है सब<br />बस थोड़ी सी देर हो गयी<br />मैं गया नहीं , पर ...<br />वक़्त के थपेड़े लगते रहते है,<br />फिर , बदलना तो मेरी भी आदत है<br /><br />शुरू से जब पैदा होता हूँ<br />हर चीज़ पीछे छूट जाती है<br />ये तरीका किसी ने दिया है<br />की.. बदलने की चाहत में<br />पूरा बीत जाता हूँ .Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-59323795252868468992010-09-09T12:41:00.000-07:002010-09-09T12:52:50.083-07:00कराहप्रेम कर भले, .... रब को पाले<br />बैर रख भले... जल जा ... मन को दे जाने<br />कर ले .. कर ले , उसको इतना कर ले<br />जब बेठ अँधेरे में, आँख जो खोले<br />सुलगता हुआ कुछ तो मिलेगा<br />तुझको .....<br />जिसने तपाया था, राख में भी आ ..पाले<br /><br />ख़ुशी का क्या है, एक जो भ्रम है<br />और वो दूजा... जो भ्रम में डाले<br />हो लेगा एक पल में उसका...<br />आजा अन्दर के अँधेरे में<br />दूजे में ... वो खुद तुझको अँधेरे में डाले<br /><br />प्रेम, बैर....अपना या कोई गैर<br />सब सुलगते है ... एक..<br />चमकती रौशनी में<br />किसी को ना कुछ जान पड़ता है<br />बस टपकेंगे कुछ बूंद आंसू के<br />वो एक तलब है ...<br />शायद किसी के ना होने की<br />या शायद कोई हो ... ऐसे की<br /><br />बंद आँखों में बहकते हुए सारे .. सब<br />एक मुस्कराहट में इतनी सरलता से<br />बह ... जायेंगे<br />आन पड़ेगा .. कभी जान पड़ेगा<br />क्या था वो ... क्यों किया मैंने ..<br />कुछ नहीं आने दे !<br /><br />बात बातो की हमेशा रहेगी<br />आज कल और फिर परसों<br />या उस से पहले ...<br />खाक तो होना ही था ..<br />फिर बीता याद आता है<br />तय करना होता है<br />शायद पहले ..<br />जब खाक होगा.. तो सोचना ना पड़े ..<br />मुझसे क्या छुटा था<br /><br />बस वक़्त की ही तो बात होती है<br />कुछ देखते है ... और जब<br />तू करता है ... तो कुछ कहते है<br />क्या फरक है ?<br />सब अब उस ..रौशनी में सुलग रहे है<br />वो जलाके जलते है .. तू जलके जल रहा है<br /><br />कभी..... एक रचना सिर्फ ढोंग की होती है<br />किसी से पूछो तो उसे सोचना होता है ..<br />फिर सोचता हूँ .. सीधा जवाब तो ..<br />जबान पर होता है ..<br />फिर क्यूँ ... !<br /><br />बह गया सब .. पर कुछ था नहीं मेरा<br />जो मेरा था .. वो एक मेरा ही ले गया<br />ऐसा होता है .. जब वो मेरा .. मेरे बाहर होता है<br />गए हुए में .. अब मैं क्यों मेरा ढूढू <br />सब संग ही तो ..सुलग रहे है<br /><br />मुड के जब पीछे देखता हूँ तो<br />सुलगती रौशनी अलाव बन जाती है<br />कडकती ठण्ड में मन को अजीब सा ...<br />आराम देती है..<br />पर ठण्ड तो मौसमी है ..<br />जब तक काम ना करूँ<br />अगली गर्म तक ..<br />जब तक खुद ना तपता रहूँ<br /><br />कभी.. कभी सुलगते हुए को<br />देखने में कुछ बुरा नहीं है<br />देखना भी चाहिए..<br />कितने मौसम पार किये है<br />बरसती बूंदों में .......<br />खुद ने भी कुछ दान किये है<br /><br />महक तो बसंत है<br />प्रेम एक बहक है..<br />ख़ुशी में एक ललक है<br />उसका अगला भी आता है<br />हर किसी को कुछ ऐसा ..<br />लिखवा जाता है<br />ले ..<br />तू पढ़ ले इसी मौसम में<br />अलाव तो अभी.. अभी सुलगा है<br />पर वो मेरा है<br />तेरा कुछ नहीं है ..<br />तू बस ताप रहा है ..<br />ताप ले .. ..और चला <span>जा<br /><br />..paras<br /></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-57354760617765277962010-08-14T22:22:00.000-07:002010-08-15T00:14:42.743-07:00क्या करू आज़ाद हूँनिकला हूँ एक गली में<br />कितनी साफ सुथरी सड़क है<br />पर नज़रे कचरा ढूढती है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />काश अकेला होता<br />एक वीरान टापू पे<br />ढूढता टूटी टहनियों को<br />सोचता आग कैसे लगती है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />मेरा एक घर है<br />नहीं नहीं...<br />एक बड़े घर में मेरा भी एक घर है<br />मेरा तो दरवाज़ा बंद है<br />आँगन से आती हुई रौशनी ताकता हूँ<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />मैं तो निडर हूँ<br />कुछ है जो डरना तय करते है<br />बस उनसे बनी अनबन ना हो जाये<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />मेरे बस का ना पूछो<br />सुबह सुबह सफ़ेद कागज़ को पढके<br />नाक सिघोड़ने की हिम्मत है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />अभी अभी एक दुकान देखी<br />मेरे भाई की ही है<br />सिखाया मैंने ही था ...<br />अगली कैसे बनानी है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />लटकते रंगों के पट्टो से कुछ याद आता है<br />घरवालो ने कुछ मंगाया था<br />क्या जाना उसी दुकान पड़ेगा<br />नहीं ...कुछ.. कंही और से ले आऊंगा <br />जिसकी हकीक़त का पता न हो<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />जो कल आया था एक पडोसी<br />सीना तान के घर दिखाया<br />कोने में पड़ी मिटटी का जो पूछा ..<br />कहा जाना इसी में है, देख देख के..<br />शौक है मुझे याद रखने का<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />उसे जोर जोर से बताया<br />रहते हुई कई साल हो गए<br />जगह से मुझे प्यार हो गया ...<br />बोलती चीजों को बदलने का दिल नहीं करता<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />अब सोचा है नया रंग करवाऊंगा<br />एक ने टोका, जब इत्ते तक नहीं तो अब क्यूँ<br />बात वाजिब लगी, मिटटी को फिर देखा<br />फिर मौत याद आ गयी ...<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />छत से कभी पानी टपकता है<br />धोती वाले की आस का असर है<br />मौसमी बारिश को भी अब कोसता हूँ..<br />खैर चलो थोड़ी मिटटी मेरी भी बह जाती है<br />बचे कीचड़ से ठंडी हवा लग जाती है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />अजब लगता है बच्चों को देख<br />बेफिक्र आँगन में खेलते रहते है<br />मिटटी हो पानी हो धुप को भी सेकते रहते है<br />रोब मारा.. मेरे घर का जो एक दिन<br />चले गए कही और, अब याद आती है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />पास की संगीत लहरियों को सुन<br />मुझको भी रंग रास आने लगा<br />सही है ..कुछ समय आनंद को भी देना चाहिए<br />चूल्हे के पास बिजली का तार लगाने लगा<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />कई बार वक्त बीत जाता है<br />उन बहुतो को सोचते हुए<br />जो मेरे साथ में ही रहते है<br />कुछ जो अच्छे है, और कुछ वो...<br />जिन्हें वो अच्छे...बुरा बताते है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />घर में चल पड़ी है कई दरारे<br />पास में वो बुरे शायद कुछ करते है<br />नहीं मेरी दिवार तो मजबूत है<br />उन्हें बता दूंगा मैं अब...<br />की उनकी कितनी कमज़ोर है<br />क्या करू आज़ाद हूँ<br /><br />बहुत बताया तुमको और सुनो<br />मेरा घर तो एक छोटा सा कमरा है..<br />उसी की बात कर रहा था..<br />एक बड़े घर के लिए तो कई कमरे बेचने पड़ते है !<br />क्या करू आज़ाद हूँ !<br /><br /><br />...<br />Jai Hind<br />paras<br />15 Aug 2010Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-43206224836023980212010-05-19T09:33:00.000-07:002010-05-19T09:43:41.559-07:00मनु मानस<span>आँखों </span>के बंद दायरे में<br />कोई अहसास सा ना है<br />बस एक मुस्कान की चमक<br />दिल में घर कर जाती है...<br /><br />जब मेरी परछाई मुझसे घबराती है<br />एक गुम्बद सर पे आ बनता है<br />इतना बड़ा इतना विशाल<br />फिर सूरज की तपन मिट जाती है ...<br />परछाई नहीं, उसकी शीतल मिल जाती है<br /><br />आती हुई आंधियों के डर से<br />जब घबरा के आंखे बंद कर लेता हूँ<br />एक नरम मुस्कान बारिश बन आती है<br />फिर आंखे खुली होती है बहती हुई आंधी में<br />बरसी हुई रेत ... एक महक बन जाती है<br /><br />आते जाते बवंडरो में डर लगता है<br />उनसे मिलके खुद की हस्ती गुम ना हो जाए<br />पकड़ के उसका सहारा, वही रहता हूँ बनके<br />खुद एक बवंडर, फिर कितने आये जाए...<br />घुमाव कितने घुरीले, खुद एक लकीर बन जाती है ।<br /><br />.. पारसParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-21677201210305512142009-12-31T06:43:00.000-08:002009-12-31T07:00:30.703-08:00ओझल भ्रमरहेगी दुनिया यही... भ्रम का कहना<br />खुद में होके, भ्रम में होके<br />असल लगे... जीले उतना उतना...<br />और औरों से होके, उनका जो मिले<br />मिलाके उसे, खुद को बुनना<br />धीरे धीरे अपनी एक डोर बन जाएगी<br />भ्रम में ही सही जिन्दगी....... कुछ तो कह जाएगी ।<br /><br />डर भी हरदम साथ रहता है<br />कभी किसी से अपने आप लगता है<br />स्वयं की परिभाषा कम पड़ जाती है<br />डर उसी कमी की छाप चढ़ता है<br />सुखा रंग पानी में मिलके जैसे चढ़ आये<br />ऐसा ही कुछ सुखा मन के कोने में रह जाये<br />हल्की सी हवा काफी है... फिर मत सोचो उसे...<br />बस कोरे मन पर लिखना अब रह जायेगा<br />लिखना वहां कुछ ऐसे.... तो डर अपने आप उड़ जायेगा <span>।<br /><br /><br />Happy New Year..<br />..paras<br /></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-89710447837787920832009-11-10T10:33:00.001-08:002009-11-18T09:38:12.607-08:00सृजनखूब जाता हूँ गहराई तक<br />क्या फायदा साथ ना रोशनी<br />इस बार वापिस आया हूँ<br />लेकर जाऊंगा, बस उतनी<br />जिस से रोशन हो जाए<br />वो गहरा गर्त जिसमें जाना होगा ।<br /><br />मिलती है खूब परछाइयाँ मुझे<br />संग मेरी चलती है ख़ुद मेरी<br />हर वक्त ताकती है बिन आँखों के अपलक<br />जहाँ जितना चलूँगा साथ चलेगी..<br />ना चाहूँ.. तो अंधेरे में भी चलना होगा !<br /><br />खूब बिखेरा है ख़ुद को यहाँ<br />अब टुकड़े ख़ुद बोलतें हैं जोड़ दो हमें<br />समेटने की मेरी ये कोशिश<br />कटिबद्ध परन्तु कुछ मिल नही रहें<br />शायद कुछ ... या एक जो किसी और के पास होगा !<br /><br />पहुँच यहाँ अब मैं सोचता हूँ<br />कितना आसान था सब करना जो किया<br />मुश्किल अब भी वही है<br />पर पहुँच वहां , जहाँ अब चाहता हूँ<br />शायद फिर यही सोचूंगा !<br /><br />साथ मेरे कौन है... कोई साबुत ??<br />नहीं ... वो टुकड़े जो मेरे है<br />समक्ष बिखरे हुए .... हर एक की कहानी है<br />अब भी जो सोचूं, ना कोई आने वाला<br />समेटना भी ख़ुद मुझे होगा !<br /><br />अन्दर की परिभाषा भी कहती है बदलो मुझे<br />बड़ा मुश्किल है हर बार , बार बार<br />कुछ ऐसा बदलना जो फिर बदलेगा<br />क्यों न कुछ ऐसा बनाऊं<br />जो स्वयं पर हो, ना किसी साबुत पर होगा !<br /><br />तब उन चंद टुकडों की संग शक्ति मिलेगी<br />वो मेरे आईने है, अलग अलग ...<br />जब मेरे साथ होंगे , तो हर दम पास होंगे<br />सब कुछ कर दूंगा, सोचा था जो चाहा था<br />फिर वो साबुत इस बिखरे को आन मिलेगा !<br /><br />बड़ा मुश्किल होता है, संग सब साथ ले चलना<br />सब यही छोड़ रहा हूँ, कुछ ना जाएगा... खैर<br />कुछ एक तो हर वक्त है, जिन्हें मैं ख़ुद बना दूँ<br />मेरी कला मेरी परछाई से बढ़कर है<br />न मांगे रोशनी, बस एक अधीर सकल मन होगा !<br /><br />जब जो करूँ , सोचूं की वो मेरा है<br />किसी को ना देखूं, क्योंकि ये मेरा है<br />जैसे तैसे ऐसे सोचूं की मेरा है<br />फिर जब सब बन जाएगा ..... तब रहना सदा ही मेरा है !<br /><br />..पारसParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-37610951209259386882009-08-20T12:40:00.000-07:002009-11-10T11:41:47.956-08:00Likh de Mujhe ...देखा कोई खाली पन्ना<br />खूब उतारा मैंने लिख<br />सोचूं मैं ख़ुद हूँ कोरा<br />मेरा बिम्ब नक़ल हो जैसे<br />अब मिले कोई ऐसा<br />जो लिख दे मुझे ...<br /><br />खामोश मैं रहूँगा<br />कभी कुछ ना कहूँगा<br />मेरी जबान वो आंखे<br />देखे और कह जाए<br />वो लफ्ज़ जो अनकहे है<br />और बस लिख दे मुझे ।<br /><br />करीने से सजी है यंहा<br />कांच की ये टुकडियां<br />खुब चमक ही चमक<br />थोड़ा ऊपर से जो गिरे<br />वो टुकड़े और थोडी छनक<br />हु मैं भी अब और हमेशा बिखरा<br />हो जो समेटे और लिख दे मुझे।<br /><br />प्यास भी अजीब होती है<br />लगे तो नाश करती है<br />बुझी तो मीठी कयास बनती है<br />वो ओस की बूंद जो रहे<br />हर तिरछी तीखी कोर पे<br />जो उतरे तो लिख दे मुझे।<br /><br />गुमराह हो अंधेरे मैं<br />भटक के जो घूमता हूँ<br />खूब रौशनी है मेरे पास<br />क्यों करूँ पता है कंहा मुड़ना<br />वो आए और मोड़ बदल दे<br />रौशनी हो और लिख दे मुझे।<br /><br />आस के गीत जो गाऊं<br />क्या सोच हो गई ऐसी<br />सोचूं कोई जोड़ ना बांधू<br />फिर भी मचल जाता हूँ<br />हर आशा का निर्णय होता है<br />पर धीरज की डोर मैं<br />मुझे बांधे और लिख दे मुझे।<br /><br />मेरी पीडा ना कोई नयी<br />ऐसी जैसे औरों की पीर मैं<br />जैसे मैं तकूँ वो भी ताकें<br />सोचे उसे जो उनमे झांके<br />नही है तो बनाये उसे जाके<br />वो जो सब हर ले और लिख दे मुझे।<br /><br />सुख के कंठ हार गए<br />शायद अब कुछ ना मांगे<br />गीत वो जो कभी थे सुरीले<br />बिन साज मैं क्या गाऊं<br />खोजु वो राग जो यंहा है<br />बस ताल दे और लिख दे मुझे<br /><br />...पारसParas Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-19733552450789764242009-07-06T08:52:00.000-07:002009-07-06T09:37:14.179-07:00मेरी पाठशाला (अपेक्षा)इच्छा मेरी, दुखों की जननी<br />सीख के मैंने, कर के जानी<br />धुप में खिले, रंगों की रानी<br />इच्छा करूँ, मेहनत से पाऊ<br /><br />बिन समय, जब जो सोचूं<br />कमजोर मैं, किस्मत कोसु<br />तोड़ अपेक्षाएं, खड़ा होके<br />तिनका तिनका, गढ़ता जाऊँ<br /><br />जब सोचा, लालसा को पकड़ा<br />मेरा बंधन, मुझी से अकडा<br />इतना भोला, कभी ना जाना<br />अब जब सोचा, तो खुल जाऊँ<br /><br />अपेक्षा मेरी, मैं जानू<br />करू मैं, भरू ही मैं<br />किया जिससे, वो क्या ले<br />तोडके उस से, मुझ को बनाऊ<br /><br />मुक्त विधा में, कला आएगी<br />असंभव काम, कर वो जायेगी<br />विधा मेरी, मेरे अन्दर<br />खूब सोचा, अब कोर ही जाऊँ<br /><br />शंका सबकी, इतनी छोटी<br />चींटी जैसी, सूंड में डोले<br />छींक डालू, तीव्र वेग से<br />जब मिटे, आशा भर जाऊ<br /><br />जो कुछ न होगा, भरूँगा क्या<br />जीवन मिला, और अपेक्षा क्या<br />मैं एकल, सब को समेट<br />केवल ज्ञान, विरल हो जाऊँ<br /><br />सबकी अभिलाषा, गवाक्ष खोले<br />जितना अन्दर, वही ढप डाले<br />शंका सबकी, पूरण काज में<br />छोड़ अपेक्षा, कर्म को जाऊ..<br /><br />paras...Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-81610850929521239582009-04-04T09:57:00.000-07:002009-04-04T11:23:27.311-07:00मेरी पाठशालामैं शांत, बस झांक<br />मैं निर्मल, अनंत भान<br /><span class="">अन्दर गहरा , बाहर कोरा</span><br /><span class="">मैं जीयू , यही कोरा</span><br /><span class="">अनंत अपार फिर भी थोड़ा !</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मैं जागूँ , या सो जाऊँ </span><br /><span class="">जब सोचूं , तो खो जाऊं </span><br /><span class="">खुल ऐसे, साज के जैसे</span><br /><span class="">जब निकलू, चमक बन जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">तेज भी, मंद भी ना</span><br /><span class="">बस प्यारा, मन को सोखे</span><br /><span class="">जब मिलूं, तो मिलकर ऐसे</span><br /><span class="">उसी का जैसे, बस घुल जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">प्रेम देखा, चल चलूँ</span><br /><span class="">आवेग झोंका, सह चलूँ</span><br /><span class="">मैं पावन, मैं निर्मल</span><br /><span class="">जो कठोर, कोमल बन जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">शब्द ऐसे, फूल हो जैसे</span><br /><span class="">कोमल पंख, पखेरू ऐसे</span><br /><span class="">वो उडे, तो अभिलाषा आए</span><br /><span class="">कोशिश करूँ, मैं उड़ जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">शंख नाद, कोरु जो आज</span><br /><span class="">बीता दिया, गया वो आज</span><br /><span class="">आएगा क्या, सोच लूँ आज</span><br /><span class="">मनन ऐसा, कर कर जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">एक पल, और हो एक विचार</span><br /><span class="">दूजा क्या, जानूं एक औजार</span><br /><span class="">मन क्या, एक कोरी पट्टी</span><br /><span class="">सफ़ेद चाक, मैं भर जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">घोर घटा, जब छायेगी</span><br /><span class="">देखते -२ , बारिश आएगी</span><br /><span class="">अँधेरी -२ , चमके बिजली</span><br /><span class="">वो तो भ्रम, समझता जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">लिखकर ऐसे, मैं सीखूं<br />सुनकर ऐसे, मैं सोचूं<br />जब तैयार, तब चलूँ<br />फिर प्रयास , करता जाऊँ</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मैं तरंग, तीव्र प्रचंड</span><br /><span class="">देख किनारा, उछल उछल</span><br /><span class="">और आगे, तो कोरी धुल</span><br /><span class="">चलता चलूँ , ना रुक जाऊँ </span><br /><span class=""></span><br /><span class="">बन सहारा, कुछ देकर</span><br /><span class="">लिया तो सब, अब कुछ देकर</span><br /><span class="">करके ऐसे, त्याग में जैसे</span><br /><span class="">प्रेम तो उसमें, बस तर जाऊँ.....</span><br /><span class=""></span><br />..paras<br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-39130847962526337732009-03-26T09:06:00.000-07:002009-03-31T09:09:53.146-07:00On My Own ....सोचता हूँ आज फिर लिखूँ , बहुत दिनों बाद फिर कुछ सीखूं,<br />जब मैं प्रयत्न करता हूँ, तो सोचकर बहुत कुछ चलता हूँ,<br /><br />मेरे हृदय में फिर भूचाल है, खैर चलता हूँ हरदम साथ लेकर<br />हो न हो कोई यहाँ, मैं चलूँगा ऐसे ही ,सम्भव सब साथ लेकर<br /><br />विचारो की माया में उलझने से बेहतर नही विचार शुन्य होना<br />खैर उलझकर सुलझाने में ही छिपा शुन्य से अनंत होना<br /><span class=""></span><br /><span class="">कड़ी धुप में बग्घी पगडण्डी पर चलती हुई, रेत के गुब्बार में</span><br /><span class="">खांसते हुए उस को देखकर, मैं सोचता हूँ, रेत के गुब्बार से</span><br /><span class="">कुछ फरक है, या नही , किसी को अहसास नही, क्यों सोचो तो</span><br /><span class="">एक जो चले अन्दर, दोनों विचार शुन्य, एक धुल के अन्दर</span><br /><span class="">एक तो चलता गया, एक जो सहता गया, आदत है सबको</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मैंने पहले ही कहा था, ये तो सीखने के लिए लिखा था,</span><br /><span class="">मिला न कोई तुक तो, क्या हुआ ऐसे ही तो सिखा था</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">लिखते हुए अगर कुछ भी न मिला तो क्या, विचार देख</span><br /><span class="">बस लिखा और लिखा,शब्द मैं क्यों उलझे , विचार देख</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मैं तो परिवर्तन की वकालत करता हूँ, कोई क्रांति नही,</span><br /><span class=""><span class="">बस सुलझन</span> से परिभाषित करता हूँ, कोई भ्रान्ति नही</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">जब शुरू हो जायें तब मुश्किल इतनी सी, चलना तो होगा </span><br /><span class=""><span class="">मैंने </span></span><span class="">भी पुनः पंक्तियों को देखा, यही <span class="">सोचा, इनका </span>अंत कहाँ होगा</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">कलम तो ऐसे ही चलती रहेगी, सोचते हुए भी सब सहती सहेगी</span><br /><span class="">चलो केवल उसी का बलिदान लो, मिले संबल तो कहती रहेगी</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">कारवां में चलना एक ही दिशा में , मिलें हवाओं के कितने रुख</span><br /><span class="">यूँही यंहा परिभाषाओ मैं उलझे रहें , तो जीवन का क्या सुख</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">भोग और उपयोग मैं बहुत फरक है, भोग तुम करो तो</span><br /><span class="">उपयोग तुम करो तो, तुम्हारा ही रहेगा,फिर न तुम रहो</span> तो<br /><span class=""></span><br /><span class="">सबके साथ सफर में कितने है, मेरा रास्ता मुझे तय </span>करना<br /><span class="">मेरे रास्तें , थोड़ा तेज़ चलना होगा, जब अकेले ही चलना </span><br /><span class=""></span><span class=""></span><span class=""></span><span class=""></span><br /><span class="">कितना कुछ सिखा अभी, मंथन कर और कर दे सही</span><br /><span class="">वो जो अब गलत है, और वो भी जो कभी न था सही</span><br /><span class=""></span><br />बनकर राही और रास्ता, सब तय कर लूँ अभी से, हाँ अभी से<br />प्रेम मिले तो त्याग सीखूं, त्याग हो तो प्रेम से करूँ, हाँ अभी से<br /><span class=""><span class=""></span></span><br /><span class="">भ्रमित मत हो बंधू, उलझन की इक डोर में ही सब कुछ समाया</span><br /><span class=""><span class="">तो सुलझाना शुरू कर अगर मेरे सिवा और किसी ने भी उलझाया </span></span><br /><br />..paras<br /><br /><br /><br /><br /><br /><span class=""></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-7136126445951139832009-01-21T02:00:00.000-08:002009-01-23T07:24:19.699-08:00Feel Euphoria...कर जतन हो सकेगा और तेरा ही होगा,<br />हाथ की लकीरे तो रह गई मुडी हुई,<br />मन तेरा गर सधा रहा तो,<br />जनम ये सफल होगा;<br /><br />खोल कर मन का पिटारा <span class="">स्वीकार कर द्वंद सारा,</span><br /><span class="">उफन पड़ेगा शायद</span> बह भी जाए,<br />इन आँखों के रस्ते, ....बहने दे पर,<br />फिर जीवन सरल होगा;<br /><br />चलूं ही क्यों इतना बोझ लेकर,<br /><span class="">जो ढोते कई और है, ढोने दो </span>,<br /><span class="">मेरा क्या मैं तो ख़ुद एक बादल हूँ ,</span><br /><span class="">गरजकर भलें ही बरसू...</span><br /><span class="">पर रंग अब धवल होगा;</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">सोचने पर जो अभी अच्छा लगे,</span><br /><span class="">बाद में कभी मन छलेगा,</span><br /><span class="">मन तो बने बिगडे,</span><br /><span class="">ज्ञान चक्षु हो तो, निर्णय अभी सरल होगा;</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">संकट में तो सब सोचे ,</span><br /><span class="">मेरा चिंतन अनवरत रहे,</span><br /><span class="">जब ऐसा मंथन रहा तो ,</span><br /><span class="">सर्वत्र सदैव परम होगा ।</span><br /><span class=""></span><br /><span class=""><span class="">..पारस </span></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-29443590047437132272008-11-12T09:57:00.000-08:002008-11-12T10:36:57.695-08:00Mujhe Azad Karo..मेरी बगिया में एक फूल खिलता है<br />क्या कहूँ हर पल जो सुकून मिलता है<br /><br />महक जो बहती रहे उसकी हवा के संग<br />चलता चलूँ मदमस्त वहीं बन मद पतंग<br /><br />काश मैं वो कीट बनूँ जो हर पल आजाद है<br />उड़ता हुआ जो जा बने जहाँ उसकी सुगंध आज है<br /><br />मेरे विचारों की एक समीक्षा है ये कुसुम<br />बस मेरी मुस्कुराहट मैं बिखरे ये मासूम<br /><br />बिखरी हुई महक के कितने ही पक्ष गुप्त है<br />कैसे रहूँगा इसके बिना जब और जहाँ ये लुप्त है<br /><span class=""></span><br /><span class="">बगिया कितनी बड़ी है जहाँ और भी महक रहे</span><br /><span class="">पर इस महक की मिठास में मेरा हर पल रहे</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">दूर जब था तो केवल देखकर खुश न था</span><br /><span class="">इसी कोमल सामीप्य के लिए कितना आतुर था</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">अब जब इन हथेलियों के बीच वो कोमल अहसास है</span><br /><span class="">तो क्या, अन्तिम पंखुडी बची हुई मेरे पास है</span><br /><span class="">है तो मुरझाई हुई पर मेरे लिए कुछ खास है</span><br />शायद <span class="">नयन बंद करने है और वही फूल मेरे पास है ..........</span><br /><span class=""></span><br /><br /><br /><span class=""></span><br /><br /><span class=""></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-75047706794677991952008-10-09T21:30:00.000-07:002008-10-10T03:50:59.493-07:00Parivartan Jo Sthir Karen...I have some discussion about 'change' and 'stability'....<br />In my previous post.....it was all about them.....<br />One logic was human beings can't have both things simultaneously..<br />but this is the stability that comes after change..<br />We find ourselves in daze among plethora of colors of life, that's why I think we need 'change' to cope with the current problem that is 'stable', and that will lead us to stability and make us enable to rejoice such a colorful life...<br />I have tried to articulate in some lines..<br /><br />जन्म मेरा न प्रयाप्त है, गर परिवर्तन न हो मुझमें<br />काया मेरी स्थूल रहें, स्थिरता के ही बेरंग में<br /><br />कुछ विकास कर मैं स्थिर बनूँ, जन्म तो मेरा हो चुका<br />स्थिरता की धुरी पर घूमता चलूँ, जब परिवर्तन हो चुका<br /><br />मनु विकास भी कहाँ सम्भव था, हरेक दिशा में भंगुर था<br />समसामयिक स्थिरता के लिए, वह परिवर्तन सुंदर था<br /><br />धरा भी अपनी घुमती रहें, अन्यथा कहीं परिवर्तन न हो<br />आवश्यक है पाठक ताकि, कहीं स्थिरता मर्दन न हो<br /><br />शान्ति स्थिरता की घोतक है, पर परिवर्तन जड़ निहित है<br />पूछूं यदि तुमसे मैं की , मन की सीमा कहाँ सीमित है<br /><br />जब ऐसे मन व्याकुल हो, मन का दमन कब तक चलेगा<br /><span class="">परिवर्तन तब आवश्यक होगा, जो स्थिरता की और बढेगा</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">जब तक परिवर्तन व्यापक है, तब तक स्थिर मैं रह चलूँगा </span><br /><span class="">आज तो केवल 'मानव' हूँ, परिवर्तन बल पर और कुछ बनूँगा ...</span><br /><span class=""></span><br /><br />"Happy Dashhara"<br />Yesterday, it was the festival of Vijyadashmi...Shri Ram conquered Ravana and we 'enjoyed' ...<br />I think.....<br /><br />दहन कर रावण का, राम हर कोई बने<br />रावण तो हर राम में, राम राम रूप धरे<br /><br />मार कर अपने रावण को, विजयादशमी तिलक करूँ<br />राम में कई रावण बचे, बस तुम्हें सूचित करूँ<br /><br />राम तो रावण मार गए, पर वो तो एक शरीर था<br />उस रावण का क्या, जो तब भी हम में शरीक था<br /><br />युद्ध कहाँ ख़त्म हुआ, बस पुतला ही तो जल रहा<br />रावण अभी बाकी है, जो राम राम जप रहा।Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-33126855078961199762008-10-08T11:05:00.000-07:002008-10-08T12:52:01.144-07:00I want to change...but...Somebody said me...I need change ... I am feeling changed..<br />Change is very fabric in our life.<br />We live everyday, we know everyone or want to know everything,everyone that is arround us..<br />and of course we want to change them..<br /><br />Another one said me...My life is so boring..I want to change myself<br />One tried to do so...but can't. why? Can you guess...<br />I can...<br /><br /><br />परिवर्तन मेरा जीवन, परिवर्तन मेरा कम्पन<br />जीवन मेरा वंदन, पर आधार मेरा परिवर्तन<br /><span class=""></span><br /><span class="">कहती मेरी ही परिभाषा, की परिवर्तन मेरी आशा</span><br /><span class="">जीवन की उलझन, परिवर्तन से पहले की निराशा</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">हर पल परिवर्तित हो, नए नए रंग निर्मित हो</span><br /><span class="">रंग भी हो ऐसे रंगीले, जो पहले ना जीवित हो</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">रंग शब्द में परिवर्तन निहित हैं, मैंने नही कहा कौनसा रंग है</span><br /><span class="">पर रंग की परिभाषा सीमित है, यह भी नही पता कौनसा ढंग है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">चांहू हर पल परिवर्तित रहूँ, जीवन ही मेरा रंग रहे</span><br /><span class="">परिवर्तन की परिभाषा, की इसी से तो जीवन स्थिर बने </span><br /><span class=""></span><br /><span class="">परिवर्तन बड़ा आसान हैं, स्थिरता के प्रतिकूल है</span><br /><span class="">पर यही परिवर्तन तो है, जो जीवन का मूल है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मैं तो बस चांहू, नए रंग मिले जो हर पल खिले</span><br /><span class="">परिवर्तन भी हो, जो स्थिरता की और चले</span><br /><span class="">पर नई आशा की किरण में रोशनी भी तो हो </span><br /><span class="">रोशन हो हर पुराना रंग ऐसा मुझको परिवर्तन मिले । </span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span>..paras<br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><br /><span class=""></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6228656418869007328.post-55787610773559836802008-10-07T10:02:00.000-07:002008-11-17T03:03:08.419-08:00Here we go...Today is not a special day...<br />But I am starting my writing here...<br />Everyone can think as I do, but it represents my thinking and me...and my Introspection<br />At least it is for me..and for my peace..<br /><span class=""></span><br />खास नही तो आम भी नही, गुज़रे वक्त की भी बात नही<br /><span class="">महज़ एक शुरुआत है, हो जिसकी कोई बिसात नही </span><br /><span class="">तक़दीर यंहा मोहताज़ नही, सारा मेरा ही काम है</span><br /><span class="">गौर नही फरमाया आपने , तो नज़ारे यंहां भी आम है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">..पारस</span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><br /><span class=""></span>Paras Kuhadhttp://www.blogger.com/profile/07858362031842757983noreply@blogger.com0