देखा कोई खाली पन्ना
खूब उतारा मैंने लिख
सोचूं मैं ख़ुद हूँ कोरा
मेरा बिम्ब नक़ल हो जैसे
अब मिले कोई ऐसा
जो लिख दे मुझे ...
खामोश मैं रहूँगा
कभी कुछ ना कहूँगा
मेरी जबान वो आंखे
देखे और कह जाए
वो लफ्ज़ जो अनकहे है
और बस लिख दे मुझे ।
करीने से सजी है यंहा
कांच की ये टुकडियां
खुब चमक ही चमक
थोड़ा ऊपर से जो गिरे
वो टुकड़े और थोडी छनक
हु मैं भी अब और हमेशा बिखरा
हो जो समेटे और लिख दे मुझे।
प्यास भी अजीब होती है
लगे तो नाश करती है
बुझी तो मीठी कयास बनती है
वो ओस की बूंद जो रहे
हर तिरछी तीखी कोर पे
जो उतरे तो लिख दे मुझे।
गुमराह हो अंधेरे मैं
भटक के जो घूमता हूँ
खूब रौशनी है मेरे पास
क्यों करूँ पता है कंहा मुड़ना
वो आए और मोड़ बदल दे
रौशनी हो और लिख दे मुझे।
आस के गीत जो गाऊं
क्या सोच हो गई ऐसी
सोचूं कोई जोड़ ना बांधू
फिर भी मचल जाता हूँ
हर आशा का निर्णय होता है
पर धीरज की डोर मैं
मुझे बांधे और लिख दे मुझे।
मेरी पीडा ना कोई नयी
ऐसी जैसे औरों की पीर मैं
जैसे मैं तकूँ वो भी ताकें
सोचे उसे जो उनमे झांके
नही है तो बनाये उसे जाके
वो जो सब हर ले और लिख दे मुझे।
सुख के कंठ हार गए
शायद अब कुछ ना मांगे
गीत वो जो कभी थे सुरीले
बिन साज मैं क्या गाऊं
खोजु वो राग जो यंहा है
बस ताल दे और लिख दे मुझे
...पारस
Thursday, August 20, 2009
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4 comments:
This one is really nice, there's some hidden meaning, i know i may not get what exactly you want to say, ( i am not that good at this stuff) but all i can say is awesome, you have an art of saying things wrapped up in emotions, keep writing, and you would get someone someday :P
@skbohra .. thanx :)
प्रिय पारस
"लिख दे मुझे " अच्छी कविता है |
प्यास भी अजीब होती है
वो जो सब हर ले और लिख दे मुझे
ताल दे और लिख दे मुझे
लिखने की अजब तड़प लिए हुए ये कविता ज़िन्दगी के साथ बेहद तारतम्य बैठाए हुए है |a
ऐसी खलबली वाली कविता के लिए बधाई |
संगीता सेठी
its very nice
i like it lot
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