Thursday, October 9, 2008

Parivartan Jo Sthir Karen...

I have some discussion about 'change' and 'stability'....
In my previous post.....it was all about them.....
One logic was human beings can't have both things simultaneously..
but this is the stability that comes after change..
We find ourselves in daze among plethora of colors of life, that's why I think we need 'change' to cope with the current problem that is 'stable', and that will lead us to stability and make us enable to rejoice such a colorful life...
I have tried to articulate in some lines..

जन्म मेरा न प्रयाप्त है, गर परिवर्तन न हो मुझमें
काया मेरी स्थूल रहें, स्थिरता के ही बेरंग में

कुछ विकास कर मैं स्थिर बनूँ, जन्म तो मेरा हो चुका
स्थिरता की धुरी पर घूमता चलूँ, जब परिवर्तन हो चुका

मनु विकास भी कहाँ सम्भव था, हरेक दिशा में भंगुर था
समसामयिक स्थिरता के लिए, वह परिवर्तन सुंदर था

धरा भी अपनी घुमती रहें, अन्यथा कहीं परिवर्तन न हो
आवश्यक है पाठक ताकि, कहीं स्थिरता मर्दन न हो

शान्ति स्थिरता की घोतक है, पर परिवर्तन जड़ निहित है
पूछूं यदि तुमसे मैं की , मन की सीमा कहाँ सीमित है

जब ऐसे मन व्याकुल हो, मन का दमन कब तक चलेगा
परिवर्तन तब आवश्यक होगा, जो स्थिरता की और बढेगा

जब तक परिवर्तन व्यापक है, तब तक स्थिर मैं रह चलूँगा
आज तो केवल 'मानव' हूँ, परिवर्तन बल पर और कुछ बनूँगा ...


"Happy Dashhara"
Yesterday, it was the festival of Vijyadashmi...Shri Ram conquered Ravana and we 'enjoyed' ...
I think.....

दहन कर रावण का, राम हर कोई बने
रावण तो हर राम में, राम राम रूप धरे

मार कर अपने रावण को, विजयादशमी तिलक करूँ
राम में कई रावण बचे, बस तुम्हें सूचित करूँ

राम तो रावण मार गए, पर वो तो एक शरीर था
उस रावण का क्या, जो तब भी हम में शरीक था

युद्ध कहाँ ख़त्म हुआ, बस पुतला ही तो जल रहा
रावण अभी बाकी है, जो राम राम जप रहा।

1 comment:

manud said...

ram tere man mein hai,
ram mere man mein hai;
man se ravan jo nikale,
ram uske man mein hai;