कभी जो कुछ आम थे
अब याद बन जायेंगे
सूखे पत्तो की तरह
गिरे जमीन पे ..
पड़े पड़े कुछ बात कह जायेंगे
मौसम के इस पल में अब वो पतझड़ है
अगले पतझड़ तक कुछ मौसम
और गुज़र जायेंगे ..
तनिक फिर अगर जो गुज़रा तो
गुज़र के वो ज़माना बन जायेंगे
उतरी टहनियों से कभी प्यार ना था
वो बहते रास्तो को रोका करती थी
वहीँ कंही चलते चलते
आज कुछ मुझे अजीब सा लगा
इन्ही रास्तो पे बीते है
कुछ एक ऐसे पल ..
जिनके जाने का यकीन भी ना था
अब उतरती हुई ये हवा जैसे
पैरो को छु छुके जाती है
मौसम की अजीब हरकतों पे
मैं खूब झल्लाया हूँ ..
इस जमी हुयी बर्फ की चादर में
रौंदती हुयी आंधी की याद हो आती है
शायद मेरी फितरत में है ऐसा कुछ
गुज़रा वो कुछ आसान सा लगता है
मगर सोच एक बार के लिए युहीं थम जाती है ...
कंही उन सब में कुछ अच्छा तो था
डूबती हुई ये सांझ रोज आती है
आज सूरज के थमते हुए पीले रंग में कुछ है ..
कुछ पुरानी चादरे ...जिनको ढक के
खूब कोसा है .. इन्हीं शामों को
खुद को हमेशा एक भीड़ से घिरा माना है
वो चेहरे जो हर वक़्त ख्याल तोड़ जाते है
नहीं देखता था चलते चलते ..
आज क्यूँ लगा की कुछ कहना उनको भी बाकी था
मेरी फितरत फिर रंग लाती है
सोचा की जाते हुए कुछ करिश्मा कर दूँ
जिनसे कभी नजरो की बात नहीं हुयी..
मुलाकात कर आज कुछ कह दूँ
यकीन किसी चीज़ में इतना बस जाता है
अच्छा हो ..बुरा हो..अपने से जुड़ जाता है
बीती बातों का क्या .. बीतती ही रहती है
मैं इतना जीया , बीतना कम सा लगा
कुछ चीज़े बस यूँही मिल जाती है
मिलने पे उनके .. कभी सवाल नहीं होते
हिस्सा बन जाती है वो , बिना किसी गौर के
वक़्त का पाया बेठा... बेठा ... मौज उड़ा ही देता है
भारी भरकम बोझों तले दबता आया हूँ
रुकते रुकते इतना वक़्त बिता दिया
कल सुबह इन्हीं गलियों से निकलते वक़्त ..
सिर्फ मेरा सामान ही भारी ना होगा
कुछ ऐसा जिसे कहने की जरुरत नहीं
कुछ ऐसे जिन्हें कहने की जरुरत थी ..
वो जानते है ... मैं जानता हूँ ...
बहकती रंगीन जिन्दगी की पिटारों में
कुछ बहारें ... साथ में थी
और अब आगे कुछ अलग होंगी ..
बस यूँही सोचा की ...
जाते हुए लम्हों को
एक बात कह दूँ .
..paras
Thursday, April 14, 2011
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